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क्रांति की अलख जगाने वाली बनारस तिरंगी बर्फी और ढलुआ मूर्ति को मिला जीआई टैग

रिपोर्ट :- अभिषेक मौर्य जौनपुर जिला प्रभारी।। क्रांति की अलख जगाने वाली बनारस तिरंगी बर्फी और ढलुआ मूर्ति को मिला जीआई टैग, काशी ने पूरा किया यूपी को 75 जीआई टैग दिलाने का वादा वाराणसी। काशी के जीआई टैग उत्पादों की फेहरिश्त दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। स्वतंत्रता क्रांति की अलख जगाने वाली बनारस तिरंगी बर्फी और ढलुआ मूर्ति (ढलाई शिल्प) को भी जीआई टैग मिल गया है। इसके साथ ही काशी ने सीएम योगी आदित्यनाथ से यूपी को देश में सर्वाधिक 75 जीआई टैग दिलाने का अपना वादा भी पूरा कर दिया। काशी क्षेत्र पूरी दुनिया के लिए जीआई हब बन गया है। वहीं काशी सर्वाधिक विविधता वाले जीआई टैग उत्पादों वाला शहर बन गया है।

जीआई मैन आफ इंडिया के रूप में ख्यातिलब्ध पद्मश्री जीआई विशेषज्ञ डा. रजनीकांत ने कहा कि यह पूरे प्रदेश के लिए गौरव का पल है। वाराणसी क्षेत्र के दो उत्पादों को जीआई टैग मिला है। काशी के पक्के महाल में बड़े चाव से बनाई व खाई जाने वाली तिरंगी बर्फी और काशीपुरा की गलियों में सैकड़ों साल से बन रहे बनारस धातु ढलाई शिल्प (मेटल कास्टिंग क्राफ्ट) को जीआई टैग मिला है। वहीं बरेली जरदोजी, बरेली केन बंबू क्राफ्ट, थारू इंब्रायडरी और पिलखुआ हैंडलाक प्रिंट टेक्सटाइल को भी जीआई टैग से नवाजा गया है। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही यूपी देश में सर्वाधिक 75 जीआई टैग वाला राज्य बन गया है। वहीं काशी क्षेत्र और पूर्वांचल के जनपदों में कुल 34 जीआई उत्पाद देश की बौद्धिक संपदा अधिकार में शुमार हो गए, जो दुनिया के किसी भू-भाग में नहीं है।

2014 से पहले थे मात्र दो जीआई उत्पाद

2014 से पहले वाराणसी क्षेत्र से मात्र दो जीआई उत्पाद थे। बनारस ब्रोकेड एवं साड़ी और भदोही हस्तनिर्मित कालीन को ही जीआई टैग मिला था। पिछले 9 वर्षों में यह संख्या बढ़कर 34 हो गई। जीआई टैग की वजह से लोकल उत्पादों को ग्लोबल पहचान मिली है। वहीं 20 लाख लोगों को अपने परंपरागत उत्पादों का कानूनी संरक्षण प्राप्त हुआ है। इससे रोजगार के नए अवसर खुले और पर्यटन, व्यापार और ई-मार्केटिंग के जरिये यहां के उत्पाद दुनिया के कोने-कोने में पहुंच रहे हैं।

जानिये कैसे इजाद हुई तिरंगी बर्फी

देश की आजादी के आंदोलन के समय क्रांतिकारियों की खुफिया मीटिंग व गुप्त सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए तिरंगी बर्फी का इजाद हुआ। इसमें केसरिया रंग के लिए केसर, हरे रंग के लिए पिस्ता और बीच में सफेद रंग के लिए खोया व काजू का इस्तेमाल किया जाता है। आज भी पक्का महाल की गलियों में बड़े चाव से गर्व के साथ बनारसी तिरंगी बर्फी खाते हैं। वहीं बनारस ढलुआ शिल्प में ठोस छोटी मूर्तियां, जिसमें मां अन्नपूर्णा, लक्ष्मी-गणेश, दुर्गाजी, हनुमान जी, विभिन्न प्रकार के यंत्र, नक्कासीदार घंटी-घंटा, सिंहासन, आचमनी पंचपात्र और सिक्कों की ढलाई वाले सील ज्यादा मशहूर रहे हैं।

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