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फैजाबाद ही नहीं राममंदिर के इर्द-गिर्द की सभी सीटें हारी भाजपा, सेंट्रल यूपी की 24 सीटों में 15 में हार

रिपोर्ट :- गणेशी पंवार हापुड़, धौलाना, गढ़ ।। यूपी में भाजपा अपनी उम्मीदों के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर सकी। पिछली बार 62 सीटें जीतने वाली भाजपा इस बार 33 पर सिमट गई। सेंट्रल यूपी में उसे बड़ी हार का सामना करना पड़ा।

भाजपा ने राममंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा और निर्माण को जिस तरह से जनता से बीच उठाया, उसका फायदा उसे नहीं मिला। राममंदिर के इर्द-गिर्द की सभी लोकसभा सीटें भाजपा हार गई। अयोध्या मंडल में उसका रिपोर्ट कार्ड ”जीरो” रहा। इतना ही नहीं वर्ष 2019 के चुनाव में भाजपा ने मध्य यूपी की 24 में से 22 सीटें जीती थीं। लेकिन, इस बार उसे इस क्षेत्र में 13 सीटों का नुकसान हुआ। वहीं, कांग्रेस को 3 और सपा को 11 सीटों का फायदा हुआ।

अयोध्या मंडल की फैजाबाद सीट भी भाजपा नहीं बचा सकी। सपा ने अयोध्या में दलित प्रत्याशी व पूर्व मंत्री अवधेश प्रसाद को उतारा, जिन्होंने भाजपा के लल्लू सिंह को 50 हजार से ज्यादा मतों से पराजित किया। इस मंडल की सबसे चर्चित सीट अमेठी में भाजपा प्रत्याशी व कद्दावर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी कांग्रेस के केएल शर्मा के सामने कहीं भी नहीं टिक सकीं। बाराबंकी में कांग्रेस के तनुज पुनिया ने दो लाख से ज्यादा मतों से भाजपा प्रत्याशी राजरानी रावत को हराकर साबित कर दिया कि मंदिर से उपजी किसी तरह की लहर यहां तक नहीं पहुंच सकी। अयोध्या मंडल के अम्बेडकरनगर क्षेत्र में पिछली बार बसपा के टिकट पर सांसद चुने गए रितेश पांडे पर भाजपा ने इस बार दांव लगाया था। उसका यह दांव भी फ्लॉप साबित हुआ। सपा के लालजी वर्मा ने उन पर बढ़त ली।

अयोध्या मंडल की ही सुल्तानपुर सीट आठ बार की सांसद मेनका गांधी नहीं जीत सकीं। रायबरेली में राहुल गांधी की प्रंचड जीत ने दिखा दिया कि सभी वर्गों का उन्हें भरपूर समर्थन मिला। खीरी में केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ थार कांड के बाद उपजे गुस्से का भाजपा ठीक से आकलन नहीं कर पाई। नतीजन, सपा के उत्कर्ष वर्मा ने उनसे यह सीट छीन ली। धौरहरा में भाजपा की रेखा वर्मा भी थोड़े मार्जिन से सपा के आनंद भदौरिया से हार गईं। सीतापुर में तो शुरुआत में खुद कांग्रेस को भी उम्मीद न थी कि उसका प्रत्याशी फाइट में आ जाएगा। राजेश वर्मा के पांच साल जनता से दूर रहने का खामियाजा भाजपा ने यह सीट गंवाकर उठाया।

लखनऊ में भाजपा के राजनाथ सिंह 99 हजार मतों से जीते, पर पिछले चुनाव के मुकाबले यह अंतर उल्लेखनीय रूप से कम है। तब उनकी जीत का अंतर 3.47 लाख था। वहीं, मोहनलालगंज में भाजपा सांसद कौशल किशोर के खिलाफ गुस्से को भी पार्टी नहीं पकड़ पाई और सपा के आरके चौधरी ने उन्हें करीब 80 हजार मतों से पटखनी दी। अलबत्ता, कैसरगंज में पहलवान से संबंधित आरोपों की गूंज असर करती हुई नहीं दिखी। यहां भाजपा के करण भूषण सिंह प्रतिद्वंद्वी सपा प्रत्याशी पर काफी भारी पड़े। अलबत्ता, हरदोई, मिश्रिख, उन्नाव, गोंडा, कानपुर, अकबरपुर और बहराइच भाजपा अपनी सीटें बचाने में सफल रही।

फतेहपुर में केंद्रीय मंत्री साध्वी निरंजन ज्योति को पछाड़कर सपा प्रत्याशी नरेश उत्तम पटेल ने सबको चौंका दिया, क्योंकि सपा ने उन्हें नामांकन के आखिरी दो दिनों में अपना प्रत्याशी बनाने का फैसला किया था। कौशांबी में राजनीतिक अनुभव से विहीन सपा के पुष्पेंद्र सरोज ने भाजपा के दो बार के सांसद विनोद सोनकर को हराकर बता दिया कि आम मतदाताओं में इंडिया गठबंधन के मुद्दे किस सीमा तक प्रभावी रहे। फर्रूखाबाद सीट भी सपा ने मामूली अंतर से जीतकर अपनी रणनीति का लोहा मनवा दिया, क्योंकि यहां सपा ने शाक्य बिरादरी के नवल किशोर को उतारा था। कन्नौज में अखिलेश यादव की जबरदस्त जीत ने दिखा दिया कि धार्मिक ध्रुवीकरण के बजाय जातीय ध्रुवीकरण क्षेत्र में ज्यादा प्रभावी रहा। अखिलेश के वहां कराए पुराने कामों ने भी उनकी काफी मदद की। इटावा सुरक्षित सीट भी इस बार सपा ने भाजपा से छीन ली।

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