वाराणसी। काशी में प्रवेश करते ही हर धार्मिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति के मुख से ‘हर हर महादेव’ का उद्घोष निकलना स्वाभाविक है। ऐसा इसलिए क्योंकि काशी के कण-कण में भगवान शिव समाये हुए हैं। 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक बाबा काशी विश्वनाथ के दरबार से करीब 2 किलोमीटर की परिधि में ऐसा प्रतीत होता है मानोमा हौल पूरी तरह शिवमय हुआ हो। काशी या बनारस अथवा वाराणसी की ऐसी कोई गली, कोई ऐसा मोहल्ला नहीं होगा जहां के मन्दिरो में स्थापित शिवलिंग पर जलाभिषेक न किया जाता हो। किन्तु काशी में बाबा महादेव का एक ऐसा भी मंदिर है जो साल में केवल एक बार शिवरात्रि के दिन खुलता है। बाकी पूरे साल यह मंदिर बन्द रहता है। यह मंदिर है काशी विश्वनाथ के पिता महेश्वर महादेव का।
देवों ने किया था यहां परमपिता महेश्वर का आह्वान
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर से लगभग आधे किमी दूर चौक क्षेत्र के शीतला गली में इस मंदिर में स्थापित मन्दिर के बारे में ऐसा माना जाता है कि जब गंगा और काशी का कोई अस्तित्व नहीं था तभी से यह मन्दिर यहां स्थापित है। मान्यता है कि जब देवी देवता काशी आये तो यहां पर अपने पिता को न देख उन्हें बड़ी निराशा हुई। उनके मन मे एक भाव आया कि इस जगह पर उनके माता-पिता का भी वास होना चाहिए। तब देवों ने परमपिता महेश्वर का आह्वान किया और देवों के आह्वान पर यहां भगवान शिव के पिता महेश्वर महादेव को स्थापित किया।
मुग़ल आक्रान्ताओं से बचाने के लिए आसपास बनाए गए घर
वाराणसी में यह मंदिर सिंधिया घाट के पास शीतला गली में स्थित है। मंदिर के पुजारी सुरेश शर्मा ने बताया कि इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग ज़मीन से करीब 40 फीट नीचे है। शिवलिंग के ऊपर एक बड़ा सा छेद है उसी से लोग दर्शन करते हैं। मंदिर इतना छुपा हुआ है कि अगर आपने इसके बारे में पहले नहीं देखा या सुना है तो आप इसके ऊपर खड़े होकर पूरे समय इसे खोजते ही रहेंगे। यह सुनने में भले ही अजीब लगे, ऐसे छिपे हुए मंदिर वाराणसी की गलियों में बहुत आम हैं। पेड मीडिया ने हमेशा इन इलाकों और मंदिरों के आसपास के घरों को अवैध अतिक्रमण बताया है जबकि सच्चाई यह है कि इन घरों को औरंगजेब जैसे आक्रमणकारियों से काशी के प्राचीन मंदिरों को छिपाने और बचाने के लिए बनाया गया था।
मंदिर परिसर का रास्ता है काफी पुराना और जर्जर
इस मंदिर के अंदर जाने के रास्ते को साल में बस शिवरात्रि के दिन एक बार खोला जाता है और उस दिन विधिवत रुद्राभिषेक भी किया जाता है। दर्शनार्थियों की सुरक्षा को लेकर यह मंदिर बन्द रहता है क्योंकि मन्दिर परिसर का रास्ता काफी पुराना और जर्जर है इसलिए इसे साल में बस एक बार ही खोला जाता है। बाकी पूरे साल शिवलिंग के ऊपर छेद से ही महेश्वर महादेव का जलाभिषेक किया जाता है। सुरेश शर्मा ये भी बताते हैं की महेश्वर मंदिर और सिद्धेश्वरी माता का मंदिर काशी के सबसे पुराने मन्दिर हैं। महेश्वर महादेव शिवलिंग के ऊपर पंचमुखी शेषनाग भी छत्र के रूप में स्थापित हैं। इसका ज़िक्र काशी खण्ड में भी है। हमारे पूर्वजों ने इन मंदिरों को आक्रमणकारियों से सुरक्षित रखने के लिए अपने जीवन को खतरे में डाल दिया और यह वास्तव में दुखद है कि हम अपने पूर्वजों को अवैध अतिक्रमणकर्ता कहकर उनका एहसान वापस कर रहे हैं।